पर्यावरणिय विनिमय और कोविड-19 के बाद आर्थिक तंगहाली से उबार

बावजूद इसके कि पर्यावरणिय प्रभाव आंकलन और खनन कानूनों में बदलाव लोकतांत्रिक तरीके से नहीं लाए गए, भारत पर्यावरणिय कानूनों के उल्लंघन को वैध ठहराता रहा है।

Download

24 मार्च 2020 को केन्द्र सरकार ने भारत भर में लाकडाउन की घोषणा कर दी ताकि एक्यूट रेसपिरेटोरी सिन्ड्रोम कोरोनावाईरस 2 (severe acute respiratory syndrome coronavirus 2 (SARS-CoV-2)) से उपजने वाले कोरोनावाईरस के नए रुप कोविड-19 (novel coronavirus disease (COVID-19)) बिमारी को भारत में फैलने से रोका जा सके। राज्य द्वारा सामाजिक और आर्थिक सहयोग दिए जाने के अभाव में लाकडाउन काफी कठोर साबित हुआ, हालांकि सामाजिक-स्वास्थ्य की दृष्टी से यह अहम था। पहले से चरमराई अर्थव्यवस्था को इस  विश्व्यापी महामारी के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा। इससे अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर होनेवाले विभिन्न प्रकार के माल के व्यापार लगभग बंद हो गए। इसके कारण लाखों मघ्यम लघु उद्योग और सेवाप्रदाता उद्यम बंद हो गए। इसके साथ-साथ असंगठित और दिहाड़ी मजदूर अचानक बेरोजगार हो गए। दूसरी तरफ, पर्यावरण में काफी तबदीलियां भी आईं जैसे कि प्रदूषित शहरों में ताज़ी हवा का बहना, नदियों का बहना और पक्षियों और पशुओं का वापस अपने उजड़े ठौर-ठिकाने पर वापस लौट जाना। औद्योगिकरण और शहरी इलाकों में होने वाले निमार्ण-कार्य का प्रभाव पर्यावरणिय प्रदूषण बढ़ाने में किस हद तक योगदान देता है, यह बात कोविड-19 के दौरान हुई लाकडाउन के दौरान पर्यावरण में जो तबदीली देखी गई उसी से समझ में आती है।

This external content requires your consent. Please note our privacy policy.

video-thumbnailOpen external content on original site

राज्य सरकारें अपने-अपने राज्यों में व्यापार और सामाजिक संगठनों को सहयोग करने के लिए और सामाजिक कल्याण  के कार्यों को लागू करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा आर्थिक सहयोग की घोषणा के इंतजार में थीं। हालांकि, जब सरकार ने लाकडाउन को धीरे-धीरे खत्म करना शुरु किया, तब केन्द्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को धक्का लगाने के लिए पूरानी आर्थिक नीतियों का ही सहारा लिया [i][ii]। सरकार ने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने वाले और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने ऐसी परियोजनाएं पर खासा जोर डाला, जो खनन वाले इलाकों में पूंजी को हाशिये पर रह रहे लोगों के नियंत्रण से निकाल कर चंद हाथों में डाल देता है। ऐसे खनन कार्यों से इन इलाकों में घूसखोरी को भी बढ़ावा मिलता है।   

कमजोर पड़ते पर्यावरणिय विनिमयन 

कोविड-19 महामारी के दौरान पर्यावरण सुधारों में सबसे अहम प्रस्ताव पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना, 2006  में संशोधन को लेकर लाया गया।

पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना में यह कहा गया है कि किसी भी प्रस्तावित परियोजना या परियोजना के विस्तार की व्यवहारिकता और उसके पर्यावरण पर असर को समझने के लिए, पूर्विक (prior) पर्यावरण प्रभाव आंकलन, जन-सुनवाई (public consultation) और विशेषज्ञ द्वारा जांच (expert scrutiny) अनिवार्य हैं। भारत का पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) इन प्रक्रियाओं के तहत ऐसी परियोजनाओं को या तो खारिज कर सकता है या सर्शत उसे मंजूरी दे सकता है। परियोजना को मिलने वाली इस मंजूरी आम भाषा मेंपर्यावरण अनापत्त (environmental clearance) कहते है। पर्यावरणिय प्रभाव आंकलन अधिसूचना 2020 (Draft EIA Notification 2020) आम जनता के बीच राय-मशवरे के लिए रखा गया है, उसमें जो बाते लिखी गईं हैं उनको पढ़कर कोई खास हैरानी नहीं होती। केन्द्र सरकार ने 2014 में सत्ता में आते ही अपने मनसूबे ज़ाहिर कर दिए थे। केन्द्र ने पर्यावरण  संबंधी कानूनों में बदलाव लाने के लिए उच्च स्तरीय समितियां (high level committee) बिठाईं [iii][iv] पिछले साल, प्रस्तावित पर्यावरणिय प्रभाव आंकलन अधिसूचना 2020 के जीरो ड्राफ्ट को राज्य सरकारों और उद्योगों के साथ सांझा किया गया [v] प्रस्तावित अधिसूचना 2020 में पुरानी नियामक बाध्यताओं (regulatory obligation) और अन्वेक्षा (oversight) से दी गई छूट को बरकरार रखा गया है, साथ ही साथ इसमें कई नई छूटों को भी समाविष्ट किया गया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इन कमजोरियों को यह कहकर उचित ठहराने की कोशिश कि, की सरकार व्यापार करने के परिस्थितियों को आसान करना चाहती हैं जिसेइज आफ डुइंग बिजनेस” (ease of doing business) भी कहते हैं। सरकार का कहना है कि एैसा करके वह पर्यावरणिय मंजूरी (environmental approval) की प्रक्रिया में आने वाली अड़चनों और रुकावटों को कम करना चाहती है [vi]

पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय के इस प्रस्तावित अधिसूचना के द्वारा पर्यावरण प्रभाव आंकलन, 2006 की पुर्नरचना करता है। लाकडाउन के दौरान, प्रस्तावित अधिसूचना 2020 पर जनता की टिप्पणी (public comments) आमंत्रित करने के लिए 60 दिनों का समय दिया गया। युवा, नागरिक और सामाजिक संगठनों ने सही और समुचित तरीके से सुझाव आमंत्रित करने के लिए सरकार से अनुरोध किया कि वे अधिसूचना के अनुवाद, स्थानीय स्तर पर प्रचार, और परार्मश के लिए ज्यादा समय दे। प्रस्तावित मसौदे को कम-से-कम तीन राज्यों में चुनौती दी गईः दिल्ली, कर्नाटक और मद्रास (तामिलनाडू) दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रस्तावित पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना 2020 कोकम-से-कम” (at least) संविधान की आठवीं अनुसूचि” (eighth schedule of the Constitution of India) में दी गई सभी भाषाओं में अनुवाद करवाने का आदेश दिया [vii] हालांकि प्रस्तावित अधिसूचना के अनुवाद पूरे नहीं हुए थे, इसके बावजूद पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अंग्रेजी में प्रचारित पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना 2020 पर टिप्पणियां हासिल करने के लिए अतिरिक्त समय नहीं दिया गया। समय-सीमा को 11 अगस्त 2020 तक ही बनाये रखा गया। कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा युनाईटेड काॅनरसवेशन मुवमेंट चैरिटेबल और वेलफेयर ट्रस्ट (United Conservation Movement Charitable and Welfare Trust) की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रस्तावित अधिसूचना 2020 के प्रकाशन कोदूसरे आदेश पारित होने तक(till further orders) रोक दिया है [viii]

प्रस्तावित अधिसूचना की आलोचना कई आधारों पर की गई है। इन आलोचनाओं में ये बातें शामिल हैं - संपूर्ण परियोजनाओं और परियोजनाओं के 50 प्रतिशत विस्तार के लिए जनसुनवाई और नोटिस पिरियड (notice period) का समय घटाकर 30 से 20 दिन कर देना। प्रस्तावित अधिसूचना ने पोस्ट फैक्टो मंजूरी (post facto approval) कोसामान्य” (normalized) बना दिया है। प्रस्तावित अधिसूचना मेंउल्लंघन” को लेकर एक नया प्रावधान डाला गया है। इसके अंर्तगत ऐसी परियोजनाओं का परिक्षण शामिल है जो बिना पूर्व-अनुमति के चालू हुए हो या जिनका निमार्ण कार्य बिना पूर्व-अनुमति के चल रहा हो। 2017 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिर्वतन मंत्रालय ने इसे one-time opportunity के रुप में अपनाया [ix] परियोजनाओं को छः महीने का समय दिया जाता था जिसमें उन्हें अपने गैरकानूनी कार्यों को उजागर करने के बाद उन्हें पोस्ट फैक्टो मंजूरी (post fact approval) दी जाती थी। लेकिन प्रस्तावित अधिसूचना 2020 के अंर्तगत पोस्ट फैक्टो मंजूरी (post fact approval) स्थायी (permanent) हो जाएगा। सेंटर पर पोलिसी रिसर्च (Centre for Policy Research (CPR)) द्वारा प्रस्तावित मसौदे का विश्लेषण इस बात पर खास जोर देता हैं किउल्लंघन (violations) से जुड़े नियम पोस्ट फैक्टो मंजूरी को विधि का विधान (fait accompli) बना देते है। उड़ीसा का दुबना-सकरादिही जैसे बड़े लोहा खदान जो उड़ीसा माइनिंग कापोरेसन द्वारा चलाया जाता है, वह बिना किसी पर्यावरण अनापत्ति (environmental clearance) के सालों से काम कर रहे हैं और फिलहाल पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वन सलाहकार समिति (Forest Advisory Committee - FAC) के  सामने लंबित पड़े हैं [x]

सरकार को प्रस्तावित अधिसूचना को लेकर लगभग 20 लाख टिप्पणियां और आपत्तियां भेजी गई हैं। इनमें टिप्पणी आमंत्रित करने की प्रक्रिया और प्रस्तावित अधिसूचना में लिखी गई बातों, दोनों को लेकर आपत्तियां जाहिर की गई हैं [xi] [xii] [xiii] कई राजनितिज्ञों ने भी इस अधिसूचना पर आपत्ति जाहिर की है। जैसे कि विज्ञान और तकनीक, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर बनाई गई स्थायी संसदीय समिति (Parliamentary Standing Committee on Science and Technology, Environment, Forests and Climate Change) के अध्यक्ष जयराम रमेश, जो पूर्व पर्यावरण मंत्री भी रहे हैं [xiv] [xv] इन सभी ने प्रस्तावित अधिसूचना के द्वारा अत्यधिक केन्द्रीकरण और कमजोर होते पर्यावरण के बचाव से जुड़े नियमों और जन-भागीदारी की बात कही है। संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत (UN Special Rapporteurs) ने भारत सरकार से जवाब-तलब किया कि क्या प्रस्तावित अधिसूचना 2020 भारत द्वारा किए गए अंर्तराष्ट्रीय समझौतों और संधियों के अनुरुप है [xvi]

हालांकि प्रस्तावित अधिसूचना को लेकर दी गई टिप्पणियों को साझा किया जाना और उसे अधिसूचित करना अभी बांकि है। पर इस दौरान पर्यावरण, वन और जलवायू परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना, 2006 जो अभी लागू है, उसको बदलना जारी रखा है। 14 सितम्बर 2020 को मंत्रालय ने एक दफ्तर ज्ञापन (office memorandum) प्रकाशित किया जिसमें महामारी के दौरान जनसुनवाई करने के प्रोटोकाल (protocol) दिए गए हैं [xvii]। पिछले कुछ महीनों में राज्य की नियामक संस्थाएं सवालों के घेरे में आ गई हैं क्योंकि लाकडाउन के दौरान ही कई जनसुनवाईयों की घोषणा कर दी गई [xviii] इस दौरान कई जनसुनवाईयां आनलाईन की गईं, बावजूद इसके कि ऐसी जनसुवाईयों तकनीकि परेशानियों के कारण ज्यादातर लोगों के पहुंच से बाहर थी। कुछ जगहों पर साधारण रुप से भी जनसुनवाईयां (physical public hearing) आयोजित की गईं थी, ऐसी सभाओं के कारण स्वास्थ्य को लेकर उपजने वाले संकट (health risk) को ध्यान में रखते हुए आपत्तियां जाहिर की गई थीं। मंत्रालय द्वारा जनसुनवाई आयोजित करने को लेकर जारी किए गए ताजे दिशानिर्देश के अनुसार 100 से ज्यादा लोगों की सभाएं कई दिनों में और आनलाईन प्लैटर्फाम का उपयोग करने की बात करता है। मंत्रालय के वरिष्ठ अफसरों का कहना है कि नए दिशानिर्देशों की जरुरत इसलिए महसूस की गई क्योंकि जनसुनवाई नहीं होने को मुद्दा बनाकर प्रोजेक्ट को नहीं रोका जा सकता। जनता से इस बात को लेकर कोई राय- मशवरा नहीं किया गया कि ऐसे जनसुनवाईयों का उनके स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा [xix] साथ ही साथ, यह सवाल भी उठता है कि पर्यावरण प्रभाव आंकलन, 2006 के नियमों को ध्यान में रखते हुए क्या ऐसी जन-सुनवाईयां स्वतंत्र और न्यायोचित तरीके से लोगों के अधिकतम भागीदारी के साथ की जा सकती हैं?

खनन कानून में गैर-लोकतांत्रिक संषोधन

मार्च 2020 में संसद के दोनो सदनों ने खनिज संशोधन बिल, 2020 पास किया। इसके कारण भारत के दो केन्द्रीय कानूनों में ऐसे परिवर्तन आए जिससे भारत में खनन से जुड़े विनिमयनों में भारी बदलाव आए हैं। खनन और खनिज (विकास और विनिमयन) कानून, 1957 और कोयला खनन (खास प्रावधान) कानून, 2015 में संशोधन किए गए ताकि भारतीय कोयला और खनन क्षेत्र में ईज आफ डुईंग बिजनेस (Ease of doing business) यानि व्यापार को आसान बनाने का लक्ष्य पूरा किया जा सके [xx] संसद द्वारा पास किए गए इस बिल ने जनवरी 2020 में इस संबंध में पास किए गए अध्यादेश की जगह ले ली। जनवरी 2020 के अध्यादेश द्वारा पहले ही इन कानूनी बदलावों को लागू किया जा चुका था, इसके बावजूद मार्च में संसद सत्र चालू होने पर इसे कानून के रुप में पारित किया गया [xxi]। इस  संशोधन के जरिए केन्द्र सरकार द्वारा कोयला खदानों का आवंटन को कानूनी जामा पहनाया जा सका। सरकार ने भारतीय और विदेशी मूल की निजी कम्पनियों और सरकारी कम्पनियों को 41 नए कोयला खदानों के नीलामी में हिस्सा लेने कि लिए आमंत्रित किया। ये कोयला खदानें इन पांच राज्यों में अवस्थित हैं: छत्तीसगढ़, झारखण्ड़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उड़ीसा।

इन संशोधनों द्वारा जो दो मुख्य बदलाव किए गए हैं जिनमें - पहला, योग्यता के दायरे को बढ़ाना जिससे नीलामी की प्रक्रिया में उन सभी कम्पनियों को शामिल किया जा सके जिनको कोयला खनन का कोई पूर्व अनुभव नहीं है। दूसरा, बिना अंतिम उपयोग (end-use) के प्रतिबंध के कोयला खनन करने की अनुमति देना। अब तक कोयला खनन ज्यादातर या तो सरकारी कम्पनियों द्वारा खुद किया जाता रहा है या तो प्राइवेट कम्पनियों के साथ माइन डेवेलप आॅपरेट कान्ट्रेक्ट (Mine Develop Operate (MDO) Contract) के जरिये किया जाता रहा है। प्राइवेट कोयला कम्पनियों को पहले खनन करने के लिए साफ-साफ बताना पड़ता था कि वे किस उद्देश्य से खनन  कर रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया के अंर्तगत उन्हे यह जाहिर करना पड़ता था कि क्या वह किसी सरकारी कम्पनी द्वारा संचालित बिजली संयंत्र को चलाने के लिए या अपने खास उपयोग के लिए कोयला खनन में लगे हैं। इन संशोधनों में यह भी कहा गया है कि नई नीलामियों के चलते अगर कोयला खदान नए लीज धारक को दी जाती है तो, “कोयला खदान के मालिकाना हक के साथ-साथ पर्यावरण और वन अनापत्ति के अधिकार भी खुद--खुद (automatically) लीज दिए जाने के दो साल तक नए लीज धारक को  सौंपे दिए जाएंगे[xxii]

भारतीय जनता पार्टी के नेत्रत्व में केन्द्र सरकार ने कोयला खदानों के व्यवसायिकरण की प्रक्रिया और अन्य कानूनी बदलावों की कल्पना की, जिसके कारण कोयला खनन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की कम्पनियों द्वारा निवेश को बढ़ावा मिला है। इस सरकार ने 2014 में सत्ता में आते ही ऐसे सुधार लाने की शुरुआत तब कर दी थी, जब पिछली सरकार के कार्यकाल में कोयला खदानों को लेकर एक अहम आर्थिकघोटाला सामने आया था [xxiii] जब इस सरकार को दोबारा 2019 में चुना गया था तब इन सुधारों की प्रक्रिया चल ही रही थी [xxiv]

मई 2020 में भारत की वित्त मंत्री निर्मला सितारमन ने कई ढ़ांचागत सुधारों (structural reforms) की घोषणा की ताकि भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊजा दी जा सके। इन सुधारों को आत्मनिर्भर भारत अभियान का नाम दिया गया था [xxv] इसके अंर्तगत सरकार ने कई क्षेत्रों से जुड़े अहम प्रस्ताव रखे थे जिसमें कई ऐसे प्रस्ताव भी थे जिनके अमल को लेकर केन्द्र सरकार ने 2014 में कुछ वायदे किये थे [xxvi] उन प्रस्तावों के उद्देश्य बदल कर आज के दौर में उन्हे वापस लाया गया है। उन प्रस्तावों को यह आसश्वासन देकर घोषित किया गया था कि, निवेश के मंजूरी की प्रक्रिया को Empowered group of Secretaries द्वारा त्वरित रुप से पास किया जाएगा। इस प्रोत्साहन पैकेज में खनन क्षेत्र पर खास जोर दिया गया है [xxvii]

अगस्त 2020 में खनन और खनिज (विकास और विनिमयन) कानून, 1957 में फिर से कुछ संशोधन किए गए और इस संबंध में जनता को अपनी टिप्पणी देने के लिए केवल 10 दिनों का समय दिया गया। इस संशोधन में सभी खनन से संबंधित अंतिम उपयोग (end-use) को लेकर जो प्रतिबंध थे उन्हें हटा दिए गए। इसी साल, कोयला खनन के संबंध में जो संशोधन पहले किए गए थे उसी आधार पर यह संशोधन भी किए गए। इन संशोधनों मेंगैरकानूनी खनन की परिभाषा में भी बदलाव करने का प्रस्ताव दिया गया था। सरकार ने अपने एक नोट में जो विवरण दिया है उससे यह बात स्पष्ट है कि, अगर खनन कार्य लीज क्षेत्र के अंदर किया जा रहा हो तो खास सीमा के ऊपर खनन करना इस नई परिभाषा के तहत गैरकानूनी नहीं माना जाएगा [xxviii] अगर खनन का कार्य जमीन पर अवैध कबज़ा करके किया जा रहा हो तब उसे गैरकानूनी माना जाएगा। इस हिसाब से, अंधाधुन खनन के चलते राजस्व और राज्य के कोष को होने वाली हानि; या खनन और उसके परिवहन से जमीन, वन, जल और आजीविका को होने वाली हानि को खनन कानून के तहत गैरकानूनी नहीं माना जाएगा। खनन और खनिज (विकास और विनिमयन) कानून, 1957 में हुए संशोधन का झारखण्ड सरकार ने इस आधार पर विरोध किया है कि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था और उद्योगों पर बुरा असर पड़ेगा। झारखण्ड़ के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने गैरकानूनी खनन की नई परिभाषा पर भी आपत्ति जताई जो अंधाधुन खनन की अनदेखी करेगा। राज्य सरकार ने संशोधन को अंतिम जामा पहनाने के पहले परार्मश की प्रक्रिया करने के लिए केन्द्र सरकार से और वक्त मांगा है [xxix] [xxx]

हाल के दिनों में, नए खदानों और पुराने खदानों के विस्तार को लेकर पर्यावरण विनिमयनों की व्याख्या बहुत ही संर्किण (reading down) तरीके से की जा रही है। जैसे कि - 2012 से ही नए खदानों और विस्तारण वाले खदानों (mine expansions) के मंजूरी को लेकर जन-भागीदारी की प्रक्रियाओं को कम करने की कोशिशें की जाती रही हैं। 2012 में उन कोयला खदानों के विस्तारण को जनसुवाई से छूट दी गई जिनका विस्तार उनकी कुल क्षमता से 25 प्रतिशत अधिक किया जा रहा था [xxxi] 2017 में ऐसे कोयला खदानों को जनसुनवाई से छूट दी गई जिनका विस्तार उनकी कुल क्षमता से 40 प्रतिशत अधिक हो। जनवरी 2020 में तटवर्ती और गैरतटवर्ती (offshore and onshore) तेल और गैस कम्पनियों को विस्तृत पर्यावरण प्रभाव आंकलन और जनसुनवाई से छूट दी गई [xxxii] यह कानूनी बदलाव तब सवालों के घेरे में गया जब असम के बागजान में आयल इंडिया लिमिटेड के तेल उत्पादक क्षेत्र में आग लग गई। इस तेल उत्पादक क्षेत्र को आस-पास के गांवों से मतभेद के आधार पर तेल अन्वेष्ण करने के लिए नए सिरे से जनसुनवाई से छूट दी गई थी [xxxiii]

लेकिन, पर्यावरण विनिमयन को कमजोर करने की पूरी प्रक्रिया कोविड-19 के कारण किए गए लाकडाउन के दौरान की जोर- शोर से की गई। लीज को आगे ना बढ़ाकर, उसके बजाय खदानों की नीलामी कर केन्द्र सरकार खनन के निजिकरण के अपने इरादे को पूरा कर रही थी [[xxxiv]]। मार्च 2020 में पर्यावरण, वन और जलवायू परिवर्तन मंत्रालय ने दो अधिसूचनाएं जारी कीं जिससे पर्यावरण और वन से संबंधित अनापत्ति खदान के मालिकों को दिया जा सके [xxxv] [xxxvi] इन अधिसूचनाओं के हिसाब से नए खदानों को दोबारा नया पर्यावरण और वन अनापत्ति प्राप्त करने की जरुरत मालिकाना हक मिलने के 2 साल तक नहीं होगी। तात्कालिक रुप से, नए खदान मालिक खनन का काम बिना किसी रुकावट के और पहले से प्राप्त मंजूरी के आधार पर कर पाऐंगे। खदानों के नए लीजों को पर्यावरणिय मंजूरी देने का एक ही मतलब निकलता है कि ऐसी परियोजनाओं को कानूनी प्रक्रिया पूरा होने के पहले ही मान्य स्वीकार कर लिया गया है। इससे खदानों के मालिकी में परिवर्तन के पहले, खनन के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करने का मौका नहीं मिलेगा। इन समस्याओं में - खेती की जमीन या पानी का प्रदूषित होना, वनों का खराब होना, और खनन की प्रक्रिया में र्दुघटना होने के कारण जानों का जाना शामिल है। ऐसे कई खदान नीलामी की सूची में है जिनके वसियत-संपदा (legacy-issues) के मुद्दे बने हुए हैं [xxxvii]

कानून के हनन को वैधिकता का जामा पहनाकर अर्थव्यवस्था को बचाना

खनन और उससे जुड़े महत्वपूर्ण व्यवसायों का विस्तारिकरण और निजीकरण करने की प्रक्रिया और पर्यावरण कानून को कमजोर करने की प्रक्रिया दोनो साथ-साथ चल रहे थे। 1990 के दशक से ही, आर्थिक निवेश मेंदेरी(delays) और परियोजना को मंजूरी मिलने उसके चालू होने में आने वालीअड़चनों(bottlenecks) के लिए ऐसे विनियामक प्रक्रियाओं को जिम्मेदार ठहराया गया है जो पर्यावरण और जनसुनवाई से जुड़े हैं। कई ऐसे उच्च-स्तरीय समितियों ने सिंगल विनडो क्लीयरेंस (single window clearance) या अनापत्ति की व्यवस्था बनाने की वकालत की है। साथ ही साथ, प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए अनुपालन के मानकों (compliance standards) और जनसुनवाई तथा आत्म-नियमन (self-regulation) से संबंधित नियमों में ढ़िलाई देने की भी वकालत तभी से की जाती रही है [xxxviii] [xxxix] [xl] इन सिफारिषों को अमल में लाने के कारण आज हमारे पर्यावरण संबंधी शासन के ढ़ांचे कमजोर और ढ़ीले पड़ गए हैं।

2014 से पर्यावरण विनिमयनों में लगातार बदलाव होते रहे हैं, जो इज आफ डूईंग बिजनेस (Ease of doing business) को बढ़ावा देते हैं यानि पूंजी के निवेश के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। इस दौरान भारत में कम अंतराल पर पर्यावरण संबंधी र्दुघटनाएं होती रहीं हैं, वायु प्रदूषण और प्रजातियों लुप्त होती रहीं हैं। साथ ही साथ, भारतीय अर्थव्यवस्था भी अब तक का सबसे खराब प्रर्दशन कर रही है। इसके अलावा, आर्थिक गैरबराबरी, रोजगार में अनौपचाकिता का स्तर (informality in employment), तथा काम और सामाजिक जीवन की अनिश्चितता (precariousness) बहुत ज्यादा बढ़ गई है। कुछ क्षेत्रों में मंदी कोविड-19 महामारी शुरु होने के बहुत पहले से चल रही है [xli] इससे यह बात साफ होती है कि आर्थिक योजनाओं और उनके संचालन की परेशानियां ढ़ांचागत हैं। प्राकृतिक संसाधनों के शासन की समस्या भी इससे जुड़ी है [xlii]

सबसे पहले, कानून और नीतियां दोनो संसद तथा जनता के सह-भागिता से बनती हैं। पर्यावरण संबंधी कानून और अर्थव्यवस्था में हो रहे बदलाव के कारण पर्यावरण पर बहुत खराब असर पड़ेगा, इसके बावजूद इनको लेकर शायद ही कोई चर्चा या बहस हुई है। लाकडाउन के दौरान खनन और पर्यावरण संबंधी विनिमयनों में जो बदलाव लाए गए हैं उससे यही समझ आता है कि केन्द्र सरकार इन कानूनों पर कम से कम चर्चा करना चाहती थी और इन गैरलोकतांत्रिक फैसलों को कानूनी जामा पहनाना चाहती थी। इससे उपजने वाले परिणामों का समाज पर बड़ा असर पड़ने वाला है। पर्यावरण विनियमनों का इस तरीके से कमजोर करने की प्रक्रिया इस देश में पहले भी हो चुकी है। खासकर नीतिगत तरीके से गैरकानूनी उल्लंघनों को कानूनी जामा पहनाया गया है। लेकिन, इससे अर्थव्यवस्था को कोई मजबूती कभी भी नहीं मिली है ना ही पर्यावरण की स्थिरता बनी रही है। कई कोर्ट के फैसले और विशेषज्ञ समितियों ने बार-बार समुचित शासन प्रणाली को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक पर्यावरण विनिमयनों और कानूनों के लागू करने की बात कही है।

समता [xliii] और नियामगिरी [xliv] फैसलों और लोहे के खनन में उल्लंघनों के संबंध में जस्टिस एम बी शाह की रिपोर्ट [xlv] और गोवा में लोहे के खनन के अंतिम फैसले [xlvi] में यह बात साफ की गई है कि खनन से जुड़ी परियोजनाओं के पर्यावरणिय और सामाजिक प्रभाव का नियंत्रण करना जनता के हितों के लिए जरुरी है। कई स्तरों पर ऐसे बड़े मामलों में संसाधनों के दोहन को लेकर ज्यादा खुलेपन और पारर्दशिता की जरुरत है ताकि प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े भ्रष्टाचार को रोका जा सके और कानून के शासन (rule of law) को बहाल रखा जा सके। इसके बावजूद सरकार पर्यावरण विनिमयन को अड़चन बताने वाले मिथकों को बढ़ावा देती है। इन मिथकों का सहारा लेकर सरकार खनन कानूनों और पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूना में लाए जा रहे गैर-लोकतांत्रिक बदलावों के ज़रीये प्राकृतिक संसाधनों की लूट को भी बढ़ावा दे रही है।

डिसक्लेमर (Disclaimer): यह लेख हेनरिक बोएल स्टीफटुंग इंड़िया के सहयोग से लिखा गया है। इस लेख में जो विचार और विश्लेषण सामने रखे गए हैं वे लेखकों के अपने विचार हैं और ये विचार हेनरिच बाॅल स्टीफटुंग के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।  

“यह लेख हेनरिक बोएल स्टिफ्टूंग के वेब डाॅसियेर (web dossier)करेंट अफेयर्स का हिस्सा है जो www.in.boell.org पर प्रकाषित होता है। यह डाॅसियेर षिक्षाविदों, सामाजिक कार्यकत्र्ताओं और सामाजिक संस्थानों से जुड़े षोधकत्र्ताओं और डेवेलपमेंट प्रोफेशनल्स के विचारों, विश्लेषणों और उनके व्यक्तिगत विचारों का संकलन है। इसमें अलग-अलग मुद्दों और विषयों के बारे में लिखा जाता है जो हालिया राजनीतिक माहौल, लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था और राजनैतिक जुड़ाव के बारे में है।

सन्दर्भ


[i] Amy Kazmin. Modi’s coronavirus ‘stimulus’ for India leaves business and investors deflated, Financial Times, 18 May 2020 accessed at https://www.ft.com/content/0fbc41f8-fe43-43b9-98b880d1494945a8  on 20 October 2020

[ii]  Abhijit Mukhopadhyay. 2020. Atmanirbhar package a feeble fiscal straw to sinking economy, India Matters, 19 May 2020 accessed at https://www.orfonline.org/expert-speak/atmanirbhar-package-feeble-fisca… on 20 October 2020

[iii] MoEFCC. 2014. Report HIGH LEVEL COMMITTEE to review various Acts administered by Ministry of Environment, Forest & Climate Change, Government of India, New Delhi.

[iv]  MoEFCC. 2015, Report of the Committee to Review the issues relating to the Coastal Regulation Zone, 2011, Government of India, New Delhi.

[v] MoEFCC Office Memorandum dated 15 April 2019 titled ‘Zero draft of the Environment Impact Assessment Notification, 2019-comments requested reg’ (F.No. 22-50/2018-IA-III)

[vi] Gaurav Noronha, Environment ministry to amend EIA norms to help businesses, Economic Times, 1 June 2020 accessed at https://economictimes.indiatimes.com/news/economy/policy/environment-mi… on 15 October 2020

[vii]  High Court of Delhi order dated 30 June 2020 in W.P.(C) 3747/2020 & CM APPL.13426/2020 (Vikrant Tongad vs Union of India)

[viii]  High Court of Karnataka order dated 7 September 2020 in W.P.No.8632/2020 (United Conservation Movement Charitable and Welfare Trust vs Union of India)

[ix] MoEFCC Office Memorandum S.O. 804 (E) dated 14 March 2017

[x] Debayan Gupta, Sampada Nayak, Kush Tanvani and Vidya Vishwanathan, 2020, The Draft EIA Notification, 2020: Reduced Regulations and Increased Exemptions Part I & II, Centre for Policy Research, New Delhi

[xi] Soutik Biswas, The environment law that mobilised two million Indians, 25 August 2020 accessed at https://www.bbc.com/news/world-asia-india-53879052 on 15 October 2020 

[xii] Goa Foundation letter to the MoEFCC dated 26 June 2020

[xiii] National Fishworkers’ Forum (NFF) letter to MoEFCC dated 6 August 2020

[xiv] Letter dated 10 August 2020 by Aditya Thackeray, Minister for Tourism, Environment and Protocol for the Maharashtra state government to Prakash Javadekar, Minister, MoEFCC

[xv] Letters dated 27 July 2020 and 10 August 2020 by Jairam Ramesh, Chairperson, Parliamentary Standing Committee on Science and Technology, Environment, Forests and Climate Change to Prakash Javadekar, Minister, MoEFCC

[xvi] Jayashree Nandi, UN Rapporteurs raise concerns over India’s draft EIA 2020, Hindustan Times 3 September 2020,  accessed at https://www.hindustantimes.com/india-news/un-rapporteurs-raiseconcerns-… on 15 October 2020

[xvii] MoEFCC Office Memorandum dated 14 September 2020: Conducting Public Hearing pandemic restrictions - reg. (F. No. 22-25/2020-IA.III

[xviii]  Jayashree Nandi, Public hearings on crucial infrastructure projects compromised due to pandemic, Hindustan Times, 14 July 2020 accessed at https://www.hindustantimes.com/indianews/public-hearings-on-crucial-inf… on 15 October 2020

[xix] Anubhuti Vishnoi, Plan afoot to 'unlock' public hearings for green clearance, Economic Times, 13 August 2020 accessed at

https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/plan-afoo…? utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst on 15 October 2020

[xx]  Press Information Bureau. Parliament Passes The Mineral Laws (Amendment) Bill, 2020: Bill to transform Indian mining sector: Pralhad Joshi, Government of India, New Delhi, 12 March 2020 accessed at https://coal.nic.in/sites/upload_files/coal/files/curentnotices/PIB-Coa… on 16 October 2020

[xxi] The Hindu Editorial. Mining deep: on Cabinet easing mining laws, The Hindu, 10 January 2020 accessed at https://www.thehindu.com/opinion/editorial/mining-deep/article30526562…  on 6 October 2020

[xxii] Press Information Bureau. Parliament Passes The Mineral Laws (Amendment) Bill, 2020: Bill to transform Indian mining sector: Pralhad Joshi, Government of India, New Delhi, 12 March 2020 accessed at https://coal.nic.in/sites/upload_files/coal/files/curentnotices/PIB-Coa… on 16 October 2020

[xxiii] PTI. Coal scam: Chronology of events, June 23, 2016 accessed at https://www.thehindu.com/news/national/coal-scam-chronology-of-events/a… on 20 October 2020

[xxiv][xxiv] PTI. Niti Aayog suggests breakup of Coal India, 24 August, 2017 accessed at

https://economictimes.indiatimes.com/industry/indl-goods/svs/metals-min… on 7 October, 2020

[xxv]Ministry of Finance, 2020. Finance Minister announces new horizons of growth; structural reforms across Eight Sectors paving way for Aatma Nirbhar Bharat, 16 MAY 2020, PIB Delhi

https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1624536 accessed on 5 October, 2020

[xxvi] NitiAyog. 2018. Strategy for New India @ 75 , Government of India, New Delhi

[xxvii] Ministry of Coal.Unleashing Coal: New Hopes for Atmanirbhar Bharat: Government of India to launch auction for commercial coal mining on 18th June 2020, 11 June 2020 accessed at https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1630919 on 7 October 2020

[xxviii] Notice with Note on proposal for Mining reforms accessed at https://mines.gov.in/writereaddata/UploadFile/notice24082020.pdf on 6 October 2020

[xxix] Anon. State rejects Centre’s plan to amend mining rules under 1957 Act, 11 September 2020 accessed at https://www.telegraphindia.com/jharkhand/jharkhand-rejects-centres-plan…  on 8 October 2020

[xxx] SatyasundarBarik. Jharkhand against inclusion of National Mineral Index in mining law amendments, 11 September 2020 accessed at 

https://www.thehindu.com/news/national/other-states/jharkhand-against-i… on 8 October 2020

[xxxi] Debayan Gupta and Kanchi Kohli. Environmental Exemptions Now Allow for Piecemeal Expansions of Coal Mines, The Wire, 25 August 2019 accessed at https://science.thewire.in/economy/energy/coal-mines-environmental-clea… 6 October 2020

[xxxii] MoEFCC Notification S.O. 236(E) dated 16 January 2020

[xxxiii] Minutes of EAC (Industry 2 Sector) held during 30-31 December 2019 & 1 January 2020

[xxxiv] IANS.Tata, Vedanta mining lease ends in March; Govt for fresh auctions  accessed at

https://www.outlookindia.com/newsscroll/tata-vedanta-mining-lease-ends-… on 16 October 2020

[xxxv] MoEFCC Notification S.O 1224 (E) dated 28 March 2020

[xxxvi] MoEFCC letter to the Principal Secretary (Forests) of All State/UT Governments with ‘Guidelines under Forest (Conservation) Act, 1980, in pursuance of the “The Mineral Laws (Amendment) Act, 2020” – regarding’ dated March 31, 2020

[xxxvii] Rabindra Nath Sinha. 2020. Anxiety Grips Workers as Iron Ore Mines’ Auction Throws up New Lessees, 10 March 2020 accessed at  

https://www.newsclick.in/Anxiety-Grips-Workers-as-Iron-Ore-Mines-Auctio… on 8 October 2020

[xxxviii] Planning Commission of India. 2006. National Mineral Policy: Report of the High-Level Committee, Government of India, New Delhi.

[xxxix] Cabinet Secretariat (2002): Report on Reforming Investment Approval and Implementation Procedure (Part II), Government of India, New Delhi.

[xl] MoEFCC. 2014. Report: High Level Committee to review various Acts administered by Ministry of Environment, Forest & Climate Change, Government of India, New Delhi

[xli] Banerjee, Sumanta. Slowdown Blues: Mining sector stares at a slump; lakhs of jobs on the line, 2 September 2019 accessed at

https://www.businesstoday.in/current/slowdown-blues/mining-sector-stare… on 7 October 2020

[xlii] Cabinet Secretariat. 2011. Report of The Committee on Allocation Of Natural Resources, Government of India, New Delhi

[xliii] Supreme Court judgment dated 11 July 1997 in Civil Appeal Nos. 4601-02 of 1991(1) with Civil Appeal No.4603 1997 (Samata vs.State of Andhra Pradesh & Ors)

[xliv] Supreme Court Judgment dated 18 April 2013 in Writ Petition (Civil) No. 180 OF 2011 (Orissa Mining Corporation v/s Union of India)

[xlv] All reports of the M.B. Shah Commission enquiry on illegal iron and manganese ore mining can be accessed at  https://mines.gov.in/ViewData/index?mid=1333

[xlvi] All documents related to the Supreme Court cases (including Writ Petition No.435/2012 and SLP No.32138/2015 related to mining in Goa can be accessed here http://goafoundation.org/mining/ as on 20 October 2020)